हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आपकी आध्यात्मिकता और मानवियत पर सबसे बड़ी दलील यह है कि मासूम इमामों ने हदीसों में आपके दर्जे और रुत्बे को बयान किया है, आप की शख़्सियत कई प्रकार से अहम है, पहले यह कि इमाम अ.स. की सभी औलाद में से हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत पर सबसे अधिक ज़ोर दिया गया है।
दूसरे आप अपने घराने में अपने सभी भाईयों बहनों में सबसे अधिक अपने वालिद (इमाम काज़िम अ.स.) और भाई (इमाम रज़ा अ.स.) के क़रीब थीं, इसके अलावा दूसरे इमामों जैसे इमाम सादिक़ अ.स. और इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. से आपके किरदार और मानवियत की वजह से आपकी ज़ियारत के बारे में कई हदीसें नक़्ल हुई हैं,
जैसाकि इमाम सादिक़ अ.स. ने आपकी विलादत की ख़बर देत हुए आपकी मारेफ़त के साथ की गई ज़ियारत का सवाब जन्नत को बताया और फ़रमाया कि आपके द्वारा शियों के हक़ में की गई शफ़ाअत ज़रूर क़ुबूल होगी।
इमाम सादिक़ अ.स. की मंसूर दवानीक़ी द्वारा शहादत 148 हिजरी में हुई और हज़रत मासूमा 179 हिजरी में पैदा हुईं यानी इमाम अ.स. की शहादत से क़रीब 30 साल बाद आप पैदा हुईं लेकिन इमाम अ.स. हज़रत मासूमा स.अ. की विलादत से 30 साल पहले ही आपके मानवी दर्जे और मक़ाम के आधार पर आपके वुजूद की अहमियत को बयान किया जैसाकि आपने फ़रमाया अल्लाह का एक हरम है जो मक्के में है,
पैग़म्बर स.अ. का भी एक हरम है जो मदीने में है, इमाम अली अ.स. का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है उसी तरह हम अहलेबैत अ.स. का भी हरम है जो क़ुम में है और बहुत जल्द वहां हमारी औलाद में से एक ख़ातून दफ़्न होगी जिसका नाम फ़ातिमा होगा, जिसने भी उनकी ज़ियारत की जन्नत उस पर वाजिब होगी, इमाम सादिक़ ने यह बात उस कही जब हज़रत मासूमा अभी दुनिया में नहीं आई थीं।
इस हदीस में इमाम अली अ.स. के बाद से सभी इमामों के हरम को इमाम सादिक़ अ.स. ने क़ुम बताया है, वैसे हदीस में कुल्लना का शब्द है जिसे देख कर कहा जा सकता है सभी चौदह मासूम अ.स. शामिल हैं,
जबकि अगर देखा जाए तो हर इमाम अ.स. का अलग हरम है किसी का कर्बला किसी का काज़मैन किसी का सामरा किसी का मशहद लेकिन फिर भी इमाम अ.स. ने अहलेबैत अ.स. के हरम को क़ुम कहा जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, और फिर इमाम की इस हदीस के बाद ही हज़रत मासूमा स.अ. का दुनिया में आना और और क़ुम में दफ़्न होना और आपकी ज़ियारत का सवाब जन्नत होना इस बात ने हमारे ध्यान को और अधिक अपनी ओर खींच लिया है।
उलमा बयान करते हैं इस हदीस का मक़सद लोगों को हज़रत मासूमा स.अ. की ज़ियारत की तरफ़ शौक़ दिलाना है ताकि इंसान आपके हरम में जा कर अल्लाह से क़रीब हो सके और उस मानवियत को हासिल कर सके जिसकी ओर इमाम सादिक़ अ.स. ने इशारा किया है और फिर क़यामत में आपकी शफ़ाअत हासिल करते हुए जन्नत में जा सके।
ज़ियारत में आपके शफ़ाअत करने के अधिकार का ज़िक्र किया गया है और यह उसी के पास होगा जो ख़ुद अल्लाह से क़रीब हो, जिस से पता चलता है आप का आध्यात्मिक दर्जा कितना बुलंद है और हदीस में जो ज़ियारत के सवाब में जन्नत के वाजिब होने की बात कही गई हैंं
। इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान गुनाह करता रहे और ज़ियारत कर ले उसके लिए भी जन्नत है, क्योंकि दूसरी और हदीसों में मारेफ़त के साथ ज़ियारत करने की शर्त है, ज़ाहिर है वह इंसान जिसको मारेफ़त होगी वह अच्छे तरह जानता होगा कि गुनाह को क़ुर्आन ने नजासत कहा और नजासत का अल्लाह ने अहलेबैत अ.स. के क़रीब न लाने का इरादा किया है।